Pawanesh Thakurathi

Abstract

4.5  

Pawanesh Thakurathi

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हल को हुआ बंजर धरती से प्रेम

हल को हुआ बंजर धरती से प्रेम

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हल का जीवन

बहुत उदासी भरा था

एक जगह पर पड़ा- पड़ा

वह ऊब गया था

आलसीपन, एकाकीपन

और 

ढेर सारी व्यथाएं

बस यही सब 

उसके जीवन में थीं। 


एक दिन उसने

बंजर जमीन को देखा

वह भी उदास थी

वह बोला-

क्या तुम भी अकेली हो ? 


जमीन बोली-

हां, मुझे कोई ठीक से देखता तक नहीं

क्या मैं इतनी कुरूप हूँ ? 


पता नहीं जमीन को देखकर

हल का हृदय जाने क्यों

बेचैन हो उठा-

नहीं, बिल्कुल नहीं

तुम बहुत सुंदर हो। 


जमीन की आंखों से

दो बूंदें टपककर

जमीन पर गिर पड़ी


हल ने उन्हें सहेज लिया

उदासी से उदासी का मिलन हुआ

एकाकीपन को एकाकीपन का सहारा मिला


हल को किसी जमीन से

इतनी मुहब्बत कभी नहीं हुई थी

और जमीन ने भी

हल के प्रेम में

अपना सर्वस्व उसे सौंप दिया था


और... कुछ समय बाद 

जमीन हरी-भरी थी। 


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