STORYMIRROR

JAI GARG

Abstract

3  

JAI GARG

Abstract

शैतानी उधेड़-बुन

शैतानी उधेड़-बुन

1 min
151

कुछ बूँदों के भय ने दुनिया के नजरिया को बदल दिया

कब तक हम अपने ही संसार से खिलवाड़ करते रहेंगे


प्राकृति के नियमों को अनदेखा करके खुदा बन गए हम

कब तक उन अनूठे विषाणु भरे जीवो पर शोध करेंगे ?


ख़ौफ़ मे सभ्यता के बदलते मनक जब युध को दावत देगे 

सृष्टि की मार, बस रह जाएगी आपदाओं से एक विरानी !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract