मर्ज़ी हमारी
मर्ज़ी हमारी
बंधन ना हो, ज़माने कि रुसवाई हम सह लेंगे
इश्क़ का ज्जबा हे समुद्र मे लहरे तो आती रहेगी
बाहों में तुम्हारी डूब जाना हमें मनजूर हे सनम
धड़कते दिल मे छुपा कर तुम्हे पनाह देंगे हम,
बेख़बर ही सही, महोबत का फतूर तुम क्या जानो
मनसुबे नेक हो तमन्नाए भी उफान भरने लगती हे,
चाहत हो हमारी ईर्ष्या किसी और का मुद्दा होगा
गुज़र जाने दो पल, हलके से हमे अब मत लेना,
घिरते बादलों के छाए मे कभी आँसू अगर बरस जाए
समझ लेना सीने से लगा कर याद किया होगा हमने।