मुहब्बत
मुहब्बत


तुमसे इतनी मुहब्बत
करते हैं कि
तुम्हारी नफ़रत का
खौफ़ भी खत्म हो गया
अब तो निकलने की
चाह है बहुत इस क़ैद से,
खुद से प्यार करना
चाहता हूँ पहले की तरह,
मगर शायद
देर हो चुकी अब तो
तुम्हे देख पाना
रोज़ ही शायद शिफ़ा है
और ज़हर भी यही शायद,
जानता हूँ ये बात भी
लेकिन यही नशा है
अब तो तुम
दूर रहो-पास रहो,
देखो-नही देखो,
मिलो-नही मिलो,
फ़र्क नही पड़ता
अब तो इतनी मुहब्बत की
तुमसे कुछ चाहता ही नहीं
प्यार जो दुनिया समझती है
उसकी भी जरूरत नही अब तो
इतनी की ये बात भी मान सकते हैं
कि ये सब एक सराब है अब तो
इतनी की 'साकेत'
कोई आशिक़ तो नही कर सकता
इसीलिए शायद इसे मुहब्बत नाम
देने से ही तौहीन है अब तो