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Saket Shubham

Drama

5.0  

Saket Shubham

Drama

सीढ़ी मंज़िल की

सीढ़ी मंज़िल की

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गगन छूने की आस हो अगर

मंज़िल की प्यास हो अगर

न घबराना बस चल पड़ना

मुट्ठी में रख उम्मीद थोड़ी सी।


साँसों में भर के आग थोड़ी सी

और हाथ बढ़ाना और छू लेना

ये आसान ही तो है

महज़ आसमान ही तो है।


न छू सको तो पंख बनाना

उड़ के पहुँचना मंज़िल को

दम बेदम न हो जाना

अगर काट दे कोई इनको भी

थोड़ी सी मुस्कान बिखेर लेना।


फिर इकट्ठे करना हौसलों को

थोड़ी उम्मीद को,

जुनून को और जान को

इनसे एक सीढ़ी बन जाएगी।


जो हर कदम पर बढ़ती जाएगी

बेज़ान समझ बस हार न जाना

आत्मविश्वास से फिर छू लेना

ये आसान ही तो है

महज़ आसमान ही तो है।


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