वतन के नाम
वतन के नाम


कारवां चला था वीर जवानों का
फ़ना हुए वतन के नाम वो जवान न रहा
रूह जवान की बस यूँ तड़प रही थी
की शहादत हुई तब वो जंग-ए-मैदान न रहा
जन्नत की बात करता था जो बुजदिल आतंकी
न मिलेगी दोज़ख़ में भी जगह उसे वो तो इंसान न रहा
अब भी कहें जो कि हम गुफ्तगू ही करें
समझो वो हिंदुस्तान का न रहा उसका हिंदुस्तान न रहा
कश्मीर गर हमारा है तो कश्मीरी भी हमारे हैं
क्या अपने कॉलेज वाला लड़का अपना भाईजान न रहा?
आग सीने में बस यूँ जला के रखना की कहना पड़े
की एक पाकिस्तान था वो पाकिस्तान न रहा
आपसी मसले को हम सुलझा ले अब अभी ही
बेकार जाएगी शहादत गर इंसान इंसान न रहा