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Saket Shubham

Others

5.0  

Saket Shubham

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लम्हे

लम्हे

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यादों के शहर से आके

छोटे नन्हे लम्हे मुझसे पूछ रहे है

कि तुम क्यों लम्हों को लिखते हो?

उन लम्हों को स्याह बूँदों में भरकर

मैं कहता हूँ

तुम न होते तो मैं ना होता


कैसे कहानी मैं कभी सुनाता

कैसे मन को मैं बहलाता

इस तन्हाई के आलम में

जब अकेला मैं रह जाता

जब बात कोई समझ न पाता

फिर तुम आते

मैं हर बात दोहराता

तुम्हे बताता

की

तुम न होते तो मैं ना होता


क्या सब मेरे साथ हुआ है

क्या सब तेरे साथ हुआ है

की कैसे तेरे साथ जिया हूँ

की कैसे तेरे बाद जिया हूँ

अब तुम जो मुझसे पूछ रहे थे

क्यों तुम लम्हों को लिखते हो

मैं फिर यादों के शहर में जाता

यादों से लम्हे ले आता

चुपके से कानों में उनके

फिर बताता

तुमने मेरा साथ दिया है

सो मैं तुम्हे लिखता हूँ

थक के सो जाने से पहले

छोड़ के वापस लम्हों को आता

आते आते ये बताता

की

तुम न होते तो मैं ना होता


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