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Saket Shubham

Romance

5.0  

Saket Shubham

Romance

तिश्नगी

तिश्नगी

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तेरा जाना भी क्या जाना था, मेरा तो जैसे मर जाना था

तू थी यार मेरा प्यार मेरा, अब तो तू है बस इंतज़ार मेरा।


साथ मिला एक यार का, बोतल में भरे इस नए प्यार का

इसके हर एक कतरे में शिफ़ा भी क्या गज़ब की थी।


पहले तुझे भुलाया करती थी फिर तुझी से मिलाया करती थी

दो ज़ाम में मैं अश्कों में डूबा जाता था, चार में तो तू खुद आया करती थी।


फिर हाथ पकड़ साथ मेरे सितारों में जाया करती थी

बादलों की चादर पर साथ मेरे फिर तू सो जाया करती थी।


हर सहर फिर जागते ही मैं मर सा जाया करता था

न तू होती, न याद तेरी, होती बस ख़ुमारी, बैचैनी सी हो जाती थी।


चार बोतलें और कचरे का ढेर, जिनमें तुझे ढूँढा करता था

फिर कहीं लेटे, शब और तेरा इंतज़ार किया फिर करता था।


और लेटते ही ख्यालों में मैं ये सोचा करता था कि

तेरा जाना भी क्या जाना था मेरा तो जैसे मर जाना था।


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