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Priyansh Tiwari

Romance

4.5  

Priyansh Tiwari

Romance

प्रेमांक

प्रेमांक

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39



स्वर्ग लोक की थी वो क्रांति, 

या थी मन की स्वप्नरूपी भ्रांति, 

रंभा सी थी चाल, नागिन से थे काले बाल, 

पहली बार में सिर्फ इतना जाना था, 

है कोई देवीय शक्ति सो शक्तिमान बनने को उसे अपना माना था, 

गुलाब की पंखुड़ी सी कोमल उसकी आँखे, 

जब कभी भी मेरा मन उनको ताके, 

तीव्र तलवार सी करती वार,

पता लगा तब गुलाब में भी काँटों की होती है धार, 

पर ये काँटे कुछ अलग थे, 

प्रेमाग्नि हेतु सुलभ थे, 

मैं जानना चाहूँ है ये मोती कौन, 

पर समझ मुझे विपक्ष बैठी थी वो सरकार सी मौन, (part-2) 



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