नीरव पीड़ा
नीरव पीड़ा


नीरव मेरे मन की पीड़ा
क्या कोई जानेगा ,
इन नीरव बरसाती रातों में
मैं अपनी अँखियन में नींद के लिए,
तेरे स्मरण में
जगकर रात बिताती हूँ ।
क्या कोई मेरी इस पीड़ा को पहचानेगा
कितनी बार प्रभु से विनती करती ,
अपना सूना संसार सरस करने को
पर फिर स्वप्न टूट जाते हैं,
और मैं तेरी याद छुपाए
वास्तविक जगत में आती हूँ।
जब नैश गगन के तारे
झुक झुक अपना राग सुनाते,
रात की अंधियारी
चॉंद का स्पर्श पा
दुग्ध स्नाता सी बन जाती
और चॉंद मुस्करा पड़ता ।
और मैं अनजान बैठी
उसको निहारा करती
मन में एक स्वप्न जाग उठता
एक सुखद सा अहसास आता,
क्या मेरे जीवन में भी
यह दिन आयेगा ।