अंजाम जो भी हो इस दास्तां का
अंजाम जो भी हो इस दास्तां का
सपनों में आना ,आकर के जाना
ये न हो हकीकत भले हो फसाना।
अंजाम जो भी हो इस दास्तां का।
मुझे याद आता है गुजरा जमाना।
यह माना बड़ी दूर तुम जा चुकी हो।
नहीं लौटने की कसम खा चुकी हो।
क्या कम है कि सपनों में यूं तेरा आना
मुझे याद आता है गुजरा जमाना।
है उजड़ा चमन और दहकती हवाएं।
नहीं तेरी खुशबू जो मन को लुभाए।
नदी तट है सूना उजड़ा है आशियाना।
मुझे याद आता है गुजरा जमाना।।
यही क्या है कम यादों में आके मिलना।
वही रूठना पास आके सिमटना।
न आके भी तेरा यू ही लौट आना।
मुझे याद आता है गुजरा जमाना।।
अकेले सफर काटना कितना मुश्किल।
कहां पाएं तनहाईयों में कोई मंजिल
मेरी लाचारियों पे न तुम मुस्कुराना।
मुझे याद आता है गुजरा जमाना।

