ग़ज़ल
ग़ज़ल
हर एक शख्स अकेला दिखाई देता है।
कभी उदास जब चेहरा दिखाई देता है।
खिजां को अब भी शिकायत है क्या कहा जाए।
शजर की शाख पे पत्ता दिखाई देता है।
मुसीबतों में सभी छोड़ गए हैं तन्हा।
धूप हो सर पे,कब साया दिखाई देता है।
सभी की तिशनगी कैसे बुझाए अब्र बता।
हर एक शख्स जब प्यासा दिखाई देता है।
भीगी पलकों से गया था वह अलविदा कहकर।
रहगुज़र पर अभी क्या क्या दिखाई देता है।
जड़ों से काटने लगते हैं उसे अपने ही।
किसी का क़द कहीं ऊंचा दिखाई देता।
मैं नहीं मांगता अल्लाह उस बुलंदी को।
जहां से हर कोई नीचा दिखाई देता है।
किसी के हुस्न की खुशबू,यह माजरा है "सगीर"।
चमन का फूल सुनहरा दिखाई देता है।

