नात
नात
मेरे हुज़ूर मुझको वो जलवा दिखाई दे।
नज़रें उठे तो गुंबदे ख़ज़रा दिखाई दे।
मेरी इबादतों को वो लुत्फ दे खुदाया।
सजदे से सर उठाऊं तो कअबा दिखाई दे।
अल्लाह बख्श दे तू ऐसा शऊर मुझको।
इश्क़ ए नज़र उठे तो मदीना दिखाई दे।
निस्बत जिसे वली का मिलता दिखाई दे।
वह शख्स ही ज़माने में सच्चा दिखाई दे।
जिसको मियां हुज़ूर बख्शेंगे रौशनी।
उसको अंधेरी रात में रस्ता दिखाई दे।
महफ़िल में तुम बुजुर्गों से आदाब सीख कर।
इश्के नज़र से देख तू ,क्या क्या दिखाई दे।
निस्बत नहीं है औलिया अल्लाह से जिसे।
मुझको तो वह ज़माने में रुसवा दिखाई दे।
जिसने अकी़दतों से नज़र डाली उसको ही।
इश्क ओ सुरूर कैफ का दरिया दिखाई दे।
मैं खुद को अहले इल्म में कुछ मानता नहीं।
जिसको भी आप चाह लें अच्छा दिखाई दे।
दामन में अपने मुझको छुपा लीजिए हुज़ूर।
जब आखि़रत में कोई न साया दिखाई दे।
उसको ज़रूर मंज़िले मक़सूद मिल गई।
ख्वाजा मियां जो आप पे शैदा दिखाई दे।
दस्ते करम "सगी़र" बुजु़र्गों का गर मिले।
इंसान की सिफत में फरिश्ता दिखाई दे।
सगीरअहमद सिद्दीकी

