इतना प्यारा तो मंजर कहीं भी नहीं
इतना प्यारा तो मंजर कहीं भी नहीं
इतना प्यारा तो मंजर कहीं भी नहीं।
आप सा प्यारा दिलबर कहीं भी नहीं।
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रुख दरख्शां लगे माहे अंजुम मगर।
तेरे जैसा तो अख्तर कहीं भी नहीं।
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कोई तुम सा नहीं बेमिसाल आप हो।
हुस्न का ऐसा पैकर कहीं भी नहीं।
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चल पड़ा हूं मैं राहों में अंजान हूं।
मील का कोई पत्थर कहीं भी नहीं।
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किस से जाकर के इंसाफ मांगे कोई।
कोई अपना अब रहबर कहीं भी नहीं।
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वक्त पर काम हो जाए मजलूम का।
आज कल ऐसा दफ्तर कहीं भी नहीं।
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अपने घर में बुजुर्गो को लगता है डर।
आज कल ऐसा बे घर कहीं भी नहीं।
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दर्द मंदों को अपनाए मजलूम को।
अब "सगीर" ऐसा सरवर कहीं भी नहीं।
