STORYMIRROR

R Rajat Verma

Tragedy

3  

R Rajat Verma

Tragedy

मुड़ न पाया हूं

मुड़ न पाया हूं

1 min
218


थमे से लम्हें, 

रहे मेरे सब,

बढ़ न पाया हूं,

कैद सा रहा,

अपने ही अंदर,

उड़ न पाया हूं,

हूं इस कदर,

खुद से टूटा,

की जुड़ न पाया हूं,

साथ ऐसा छूटा,

की मुड़ न पाया हूं।


अंदर ही अंदर,

घुट गया मैं,

कह न पाया हूं,

रूह है रूठी,

लुट गया मैं,

सह न पाया हूं,

हूं इस कदर,

खुद से टूटा,

की जुड़ न पाया हूं,

साथ ऐसा छूटा,

की मुड़ न पाया हूं।


हालात मेरे कभी,

मेरे साथ नहीं,

देख न पाया हूं,

ज़ुबान पे मेरे,

रुके अल्फ़ाज़ नहीं,

बोल न पाया हूं,

हूं इस कदर,

खुद से टूटा,

की जुड़ न पाया हूं,

साथ ऐसा छूटा,

की मुड़ न पाया हूं।


बन गए आंसू,

सारे मेरे सपने,

बह न पाया हूं,

रूठ गए मुझसे,

जो थे अपने,

सह न पाया हूं,

हूं इस कदर,

खुद से टूटा,

की जुड़ न पाया हूं,

साथ ऐसा छूटा,

की मुड़ न पाया हूं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy