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Dr Javaid Tahir

Drama Romance

5.0  

Dr Javaid Tahir

Drama Romance

मोहब्बत

मोहब्बत

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ऐ हमसफ़र क़या हुआ इतना बेवफ़ा क़यों हुआ

सुन लेता था जो ख़ामोशी भी मेरी, वो दिल तेरा क़या हुआ


अपनी चूड़ी की खनक, मेंहदी पे नाम रख मेरा

बेबस तो हूँ मगर, बेउम्मीद तो न हुआ।


ऐ फ़िज़ा कह दे गुलों से तुम मे वो रंगत नहीं

ग़ज़ल उन आँखों से गिरी और मैं शायर हुआ।


इन दीवारों ने पूछा अब तेरे जाने के बाद

एक यहाँ घर था बता उसका क्या हुआ।


ये ख़ुदा के फ़ैसले और ये अरशी निज़ाम

मौत बरहक रही पर तू न मेरा हुआ।


तेरे दिल की हैं अमानत चन्द साँसें बस मेरी

मौत रूक जा अभी कर्ज़ कहाँ चुकता हुआ।


रूह भी थक गयी कौन समझाये दिल को अब

बंदगी है ख़ुदा की और ये सजदा तुमको हुआ।


बाक़ी हैं तेरी हसरतें और मेरी तनहाइयाँ

मुसकुराया है तो तू, पर उसके बाद क्या हुआ।


दिल धड़कने से महज़ जब दे न सका ज़िन्दगी

कि मोहब्बत की परसतिश फिर कहीं ज़िन्दा हुआ।


तपती धूप में मुझे याद आये तेरे गेसू बहुत

झुलसे चहरे ने पुकारा उस घटा का क्या हुआ।


इन ग़मों को चाहिये दिल के एक कोने से उठें

ख़ुशियां मुझसे पूछती हैं रास्ते का क्या हुआ।


तुझे पुकारूँ भी तो कैसे एक कमी सी है कहीं

रात भर रोया जो दिल, सुबह वही पत्थर हुआ।


आईने ऐसे कहीं बाज़ार में मिलते नहीं

कोई देखना चाहे मुझे और तू ज़ाहिर हुआ।


तेरी अनगिनत यादों की क़ब्र से एक अदा ने दी आवाज़

जाओ रहने दो ताहिर प्यार न तुमसे हुआ।


बज़्म में मिलती न हो इज़ज़त जब किसी नज़्म को

या मेरा दिल बेहिस या शहर मुर्दा हुआ।


अब चलो जावेद मसजिद या बुतख़ाने मे कहीं

फ़र्क क्या पूजा हुई या कोई सजदा हुआ।


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