मोहब्बत मेरा
मोहब्बत मेरा
सिलवटें ले रही हैं साँसें देखकर मोहब्बत मेरी
वक्त न है कह के गुमशुदा ,पाकर मोहब्बत तेरी ...
जंजीर कैसा ये इश्क नाम का जिसका तोड़ नहीं
चाह रखकर भी न चाहे जो उसका कौई जोड़ नहीं ...
इर्दगिर्द रहते गैर कहती जिसे , उन्हें अपना सोचती
अपना कहकर भी हमें यकीनन गैर ही मानती ...
मगरूर है वो या फिर प्यार में किस्मत ही मेरी
जो न समझे प्यार की अहमियत क्या प्यार तेरी ....
इबादत है प्यार मेरा खुदा भी जान लिया होगा
तू बनी नहीं मेरे लिए खुदा अब मान लिया होगा।

