प्रेम
प्रेम
नये वाग की नूतन पुष्प आज प्रियतम कोमल है
अमृत छलका के भी प्रेमी के भाग्य हलाहल है
मत करो शंका की सच्चाई भी लगे अब बेईमान
जहां न हो विश्वास और त्याग संबंध विफल है
खोकर ढूंढना ओर करते रहोगे पश्चाताप यदि
हृदय किनारे के मोहब्बत में इबादत निष्फल है
नजर कितने भी तारों पे पड़े दिल तो है चाँद में
प्रीत समझ जाए प्रणय को यदि प्रेम सफल है
क्या रखा मन को चोट देकर तू भी बता "राकेश"
दुःख सागर में साथ हो साथी तब मधुर फल है