मोहब्बत की बस्ती
मोहब्बत की बस्ती
क्या मोहब्बत की कोई बस्ती सजा सकते नहीं
हम भुलाकर नफरतों को पास आ सकते नहीं।
बेवज़ह यूँ रूठना तो प्रेम में होता नहींं
हो जो मन के मन्दिरों में तो भुला सकते नहीं।
चाहतो की कल्पनायें जो संजोये दिल में थे
इक कशिश में ही उसे ऐसे भुला सकते नहींं।
प्रेम की देवी जिसे हम भाव में है पूजते हैं
आज जो रुसवा हुए हम आजमा सकते नहींं।
आप थी मन मन्दिर है आप ही और रहेंगी
हम यूँ ही किसी और को दिल में बसा सकते नहीं।
प्रेम पूजा और दुआ है समर्पण भाव का
है प्रेम पपीहे की तरह शिवम् भौरें बना सकते नहीं !