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Jalpa lalani 'Zoya'

Abstract

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Jalpa lalani 'Zoya'

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मोहब्बत का जनाजा

मोहब्बत का जनाजा

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सजा-ए-इश्क़ में ऐसा ज़ख्म खाया मैंने,

ख़्वाहिश-ए-वस्ल में शब-ए-हिज़्रा पाया मैंने


बेरंग सी ज़िंदगी को रंगों से सजाया था जो,

मुकरा इकरार करके पर वादा निभाया मैंने


झूठा दिलाशा देने हमदर्द बन के था जो आया

उस की बातों में आकर खुद को सताया मैंने


बह के जज़्बातों में लगा बैठे दिल बेदर्दी से,

और दिल को तन्हाई का घर ख़ुद बनाया मैंने,


चला गया वो मारकर मुझ पे धोखे का खंजर,

अपनी मोहब्बत के जनाजे को ख़ुद उठाया मैंने।


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