मोबाइल लव
मोबाइल लव
कोई रस्में हुईं नहीं, ना हुए कोई फेरे
न मुहूर्त निकला कोई मिलने का तुझसे मेरे
दोस्ती से बढ़कर रिश्ते में बंध गया मैं तेरे
लोग जानें कहते क्यों, मोबाइल निर्जीव ठहरे
सुबह सुबह माँ की तरह उठाता है
दिन भर के ज़रूरी काम याद दिलाता है
कोई कितनी भी दूर हो, मिलने से मजबूर हो
वीडियो या कॉल से, लगने लगता करीब मेरे
लोग जानें कहते क्यों, मोबाइल निर्जीव ठहरे
त्योहार हो या जन्मदिन, पल पल बधाई मिलती हैं
खाना , कपड़े , राशन ऑनलाइन दवाई मिलती है
कपड़े, जूते, गिफ़्ट हो, या घर का सामान हो
मंगा देता हैं मेरी पसंद का, पापा की तरह मेरे
लोग जाने कहते क्यों, मोबाइल निर्जीव ठहरे
मैं भी जीवन साथी की तरह इसका ख्याल रखता हूँ
कवर आदि में सुरक्षित, डेटा आदि से मालामाल रखता हूँ
मेरे खाली समय मे गीतों, खेलों से बहलाता है मन को
जब मैं चाहूं सुनता सबको सुनाता, कविता -कहानियां मेरे
लोग जानें कहते क्यों, मोबाइल निर्जीव ठहरे