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Brijlala Rohan

Tragedy Inspirational

3  

Brijlala Rohan

Tragedy Inspirational

मंज़िल की ललक

मंज़िल की ललक

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347


एक छोटी सी प्रयास है, मन में जगी विश्वास है ।

रास्ते बहुत पथरीले हैं, मंज़िल भले ही अभी बहुत दूर है ।

लेकिन जज्बा, हौसला भरपूर है।

हौसले बुलंद हैं, मन में सफलता की चाहत है

जिगर में मंज़िल को पाने की ललक है। 

रूकना मुनासिब नहीं अब, सदा बढ़ते रहते की जिद है।

अस्तित्व की इस लड़ाई मुझे जूझने और जीतने की पूरी उम्मीद है।

तुलना किसी से करनी नहीं है अपनी मुझे

न किसी को कुछ दिखाना है।

लड़ाई खुद की खुद से ही है।

मुझे खुद ही खुद को आँकना है।

कायरों की भाँति जीना नहीं मुझे,

हम वीर भगत जैसे सपूतों को जन्म देने वाली धरा की संतान हैं।

हमें मेहनत की रोटी खाना है। चाहे रास्ते में कितने भी विघ्न आये

हमें प्रयास से सदा परिणिति की ओर बढ़ना है।

नींद- चैन को त्याग दी मैंने, अब मंज़िल पाना ही बची अंतिम मकसद है।

पाना हर हाल में है यही मात्र जीने की बची अंतिम हसरत है।।


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