कलम बेचतीं लड़कियां
कलम बेचतीं लड़कियां
कलम बेचती लड़कियां......
विगत दिवस हमने बड़े धूम धाम से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया !
नारी सशक्तिकरण, महिला उत्थान की बड़ी- बड़ी बातें की,
जैसा की हम नारी पूज्यन्ते जैसे जुमलों से वर्षो से करते आ रहे हैं?
कार्यक्रम स्थल तक पहुंचने के लिए जिस नजदीकी मेट्रो स्टेशन उतरे
वहां पर दिख गईं वह कलम बेचती लड़कियां
जो भईया ले लो ....ले लो ....
की रट लगाए जा रहीं थीं !
कभी हाथ पकड़ लेती तो कभी बैग !
उसकी आवाज़. में बेबसी थी !
उसके कंठ रूंधे थे, और चेहरा मुरझाया सा ...
तब मुझे ये करुण दृश्य अंदर तक कचोटती है कि....
सरकारें जिस महिला सशक्तिकरण की बड़ी- बड़ी डींगे हांक रही होती है
..
हकीकत ठीक इसके कितना उलट है !
धरातल पर आधी आबादी के ये नारे कितना बेनामी साबित हो रही है!
तब मुझे याद आती है इनके लिए जिम्मेदार कहीं-न-कहीं हम सभी हैं...
जो खुद के स्वार्थ में इतना लिप्त हैं कि हमें इनकी सुध हमें तनीक भी नहीं..
हमारे अधिकार बस हम तक ही सिमट कर रह जाते हैं...
जो इस बात की तस्दीक देते हैं....की मानवता आज ICU में है और संवेदना वेंटिलेटर पर.....
और यह हमारे नैतिक पतन की पराकाष्ठा है।