तुम सचमुच बहादुर हो
तुम सचमुच बहादुर हो
दर्दों से दो-दो हाथ करके कर्तव्य पथ पर बढ़ते जाती हो,
नहीं..! कभी पीछे मुड़ती अपनी जीवन में रंग भरते जाती हो!
उन कठिन दिनों के दर्द में भी साहसी की भाँति सहती हो,
बिना मुंह से उफ्फ किए अपनी कैनवास बड़ी करती हो..!
संघर्ष मार्ग में पहुंची हो यहां तक तो
मंज़िल भी अब दूर नहीं...
रुकना तो अब विधि को भी मंजूर नहीं!
चाहे मार्ग में बाधा जो भी आए सब सहकर साथी बढ़ते जाना..!
हर परिस्थिति में साथ अपने साथी तुम मुझे पाना...!