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Shashi Aswal

Drama

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Shashi Aswal

Drama

मँझधार

मँझधार

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एक तो टीचर का खौफ़ 

दूसरा पेरेंट्स का दवाब 

हम है बीच मँझदार में फँसे 

कोई तो निकाले हमें इन सबसे 


दसवीं कक्षा में होना 

कोई "खाला जी का घर"

है क्या? 

जीवन के सबसे असमंजस 

समय में 

दयनीय स्थिति होती है हमारी 


शारीरिक और मानसिक तौर 

पर जूझ रहे होते है 

अपने मन और मस्तिष्क से 

जीवन के इस पड़ाव पर 


इस कदम पर हर फैसला 

जुड़ा होता है हमारे कल से 

हमारा आने वाला 

कल कैसा होगा 

निर्भर करता है हमारे आज पर 


मगर हमारे से ज्यादा तो 

हमारे पेरेंट्स परेशान होते है 

हमारे नंबरों को लेकर 

और दवाब बनाते है कि 

80% से ज्यादा तो 

आने ही चाहिए नंबर 

नहीं तो आगे एडमिशन 

होने में परेशानी आएगी 


और इन सबसे अलग 

आते है चुगलखोर रिश्तेदार 

हर दूसरे-तीसरे दिन 

फोन करके पूछेंगे कि 

पढ़ाई कैसी चल रही है बच्चे की 

उससे कहो मन लगाकर पढ़ाई करे 

खेलना, टी.वी. देखना बंद करो 


उन सबका बस चले तो 

घर से भी बाहर न निकलने दे 

कैमरा लगा दे हमारी 

हर एक हलचल पर 


आगे क्या करने का सोचा है 

ऐसा कहकर पूछते तो है 

पर फिर खुद ही पेरेंट्स को 

बताने लगेंगे कि 

मेडिकल या नॉन मेडिकल 

ही दिलाना 


अरे जब बताना ही था 

तो पूछने का क्या ढोंग करना 

सीधा बता ही दो 

कि क्या करवाना चाहिए 


बस भगवान करें कि 

सब अच्छे से हो जाए 

इस मँझधार को हम 

आसानी से पार कर जाए 

पेपर में अच्छे नंबर न सही 

पर अच्छे इंसान हम बन जाए 

और अपने साथ-साथ 

पेरेंट्स का नाम रोशन कर जाए।


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