मन कुछ कहता है..
मन कुछ कहता है..
सावन के बादलों सा घुमड रहा है तेरे मन में
घुटी फिजाओं का शोर हर तरफ़ मेरे मन में
पत्ता पत्ता बूटा बूटा मुन्तजिर है तेरा मन में
मौसम ए बहार को तरसे ये दिल मेरा मन में
मैं नहीं हूँ जुदा किसी भी लम्हा तुझसे मन में
कशिश तेरी दूर कर रही है मुझे मुझसे मन में
जाने क्यूँ तेरी बेरुखी की हद हो गयी बता
क्यूँ तेरी मेरी तय एक सरहद हो गयी बता
हर लम्हा मुझसे बहुत दूर जाने की कोशिश में
तेरे दिल दिमाग है मेरे पास लाने की कोशिश में
करता है दिखावा लापरवाह बनने का मुझसे
तेरे एहसास कर रहे हैं मेरे लिए बगावत तुझसे।