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shaily Tripathi

Romance

4  

shaily Tripathi

Romance

मन हारी

मन हारी

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क्यों आख़िर! क्यों तुम रूठ गए? 

बस कुछ पल में तुम हम दोनों का 

स्नेहिल रिश्ता भूल गए? 

क्या क्षण भंगुर इस जीवन पर 

अभिमान तुम्हारा भारी है??? 

इस प्यार भरे पागल दिल पर, बस तेरी दावेदारी है, 

मत ठुकराओ तुम प्यार मेरा 

तुमसे तो दिल का रिश्ता है 

बस एक जन्म का नहीं… 

हमारा जनम-जनम का किस्सा है, 

थोड़ा सा रुक जाते जो तुम 

मैं सारी पीड़ा हर लेती, 

तेरे होंठों पर चुम्बन कर, 

यह क्रोध गरल सब पी लेती। 

तुम रुके नहीं क्योंकि, आहत सा, दर्प तुम्हारा दुःखता था, 

बस अहंकार से उत्तेजित सारा व्यवहार टीसता था। 

दौलत, सम्मान, प्रतिष्ठा को तुमने ही व्यर्थ घसीटा था , 

वो मान्य नहीं है मुझे कभी, मैंने पहले ही बोला था, 

मैं सिर्फ़ तुम्हारे अन्तस के, अनुराग सिंधु की प्यासी थी, 

यश, कीर्ति और धन दौलत को, रत्ती सम नहीं समझती थी… 

मेरी आँखों में प्यार सिर्फ़, दो भावुक मन का रिश्ता है, 

यह भौतिक- लौकिक नहीं, वाष्प सा दिग्दिगंत में तिरता है…. 

यह परिभाषा ही ऐसी है, कोई भी समझ नहीं पाया, 

मेरे आजीवन अन्वेषण में, कोई नज़र नहीं आया.. 

तुम को पा कर सोचा मैंने, मुझको मिल गया किनारा है, 

मेरा ही जैसा इक पागल, कर्ता ने तुम्हें बनाया है, 

पर कुछ ही दिन के सपनों में, ये रात हमारी बीत गई, 

तुम समझ न पाए मेरा मन और बात अधूरी छूट गई….. 

पीड़ित था मन उन लोगों से, जो दुनियादारी करते हैं, 

रिश्ते - नातों में धन-दौलत और मान घसीटा करते हैं, 

तुम भी वैसे थे जानेमन, तुमको भी यह बीमारी थी,

निश्छल मन से तुमको चाहा, मैं मूरख मन से हारी थी.



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