मजदूर
मजदूर
दूसरों के ख्वाबों को बुनते-बुनते। उसके ख्वाब उधड़ गए ।
ऊंची -ऊंची मंजिलों तले।
उसके कई जनाजे निकल गए।
जज्बातों का जनाजा यूं निकलते देखा है।
मजदूर की मौत पर आंखों में आँसू तक नहीं देखा है ।
मुफलिसी का यह आलम।
फिर भी ईमान पर है कायम। मजदूर है तो क्या ?
है हर दुख दर्द इसका जायज।