मज़दूर
मज़दूर
हमने वफाएं की है
किसी नफा के उम्मीदों पर नहीं
तुमने ज्यादतियां की है
और हम उफ़ तक ना करे
तुम्हारे पैसों से हमारा घर बसता जरूर है
पर भूलना नहीं हमारे खून से तुम्हारे भी घर रौशन होते है
हम मजदूर है साहब गरीबी का रोना नहीं
हमारे हक की रोटियां तोड़ते है।