मजदूर दिवस
मजदूर दिवस
तुम्हें पता ही नहीं चला होगा
इक उम्र दरम्यां गुज़र गई होगी
झुर्रियां यूं ही पेशानी पे नहीं होगी
कई दिन,धूप-छांव ढल चुकी होगी।
कल कोई अवकाश रहा होगा
हुक्मरानों को काम की पड़ी होगी
छुट्टियां खपा दो की काम पूरा हो
कोई नई मुनाद फिर बजी होगी।
ये मजदूरों का दिन जिसने भी बनाया होगा
कहीं उसने भी कोई त्रासदी सही होगी
रात भर जाग के काटी होगी
दिन भर मजदूरी में कटा होगा।
लाख सड़कों पे हक की बातें होती होंगी
गाहे -बगाहे कोई चिंगारी फूटती होगी
तमाम ताकत जुटा ली जाती होंगी
चीख जमींदोज की जाती होगी।
हर सदी में इक कहानी होती होगी
एक राजा एक बेजुबां रंक की ज़ुबानी होती होगी
एक आरामगाह में सुकून से सोता होगा
एक ने रात-दिन जाग के काटी होगी।
'वो सुबह कभी तो आयेगी' जब लिखा होगा
सौ उम्मीद कई सौ दर्द लफ्जों में पिरोया होगा
कभी तो उनका भी दर्द समझना होगा
'तमसो मां ज्योतिर्गमय' प्रार्थना तभी सुफल होगी।