मज़ाक उड़ा रहे हो
मज़ाक उड़ा रहे हो
रोटी के लाले हैं
पैरों में छाले हैं
पड़े लिखे बच्चे बेकार हैं
बेटियाँ बिन ब्याही
दहेज की मार है
शरीफ आदमी का जीना मुश्किल है
वर्तमान चौपट, अनिश्चित भरा कल है
और तुम उपलब्धियां गिना रहे हो
क्यों मज़ाक उड़ा रहे हो
महंगाई, भ्रष्टाचार, लूट-खसोट
तुम्हारे वादे इरादों में खोट
टैक्स, चालान, झूठे केस की चोट पर चोट
और तुम फिर से राज पाठ की रणनीति
बना रहे हो
तुम्हारी आंधी ने छत छीन ली
कपड़ों की जगह पोस्टर पहना दिए
रोटी की जगह झंडे थमा दिए
दंगे फसाद में बेमौत मार दिए
आप कौन सी उपलब्धियां गिना रहे हैं
तुम्हारे शोर से कान फटे जा रहे हैं।