मीरा सा प्रेम कहाँ है
मीरा सा प्रेम कहाँ है
कृष्ण भी कब राधा को मिला है
राधा के मन में मीरा के शब्दों में
प्रेम रुपी कृष्ण बसा है।
प्रेम तो एक साध है यह तो
महसूस करने वाला एहसास है
यह तो प्रेम का निश्चल स्वरुप है
जो मीरा के भजनों में नजर आता है।
कलयुग में भी कृष्ण से पहले राधा
का नाम ही लिया जाता है
पत्नी तो रुक्मणी थी किंतु
मंदिरों मे राधा कृष्ण को पूजा जाता है।
सच्चा प्रेम सदैव अमर हो जाता है
छल कपट से भरे इस युग में भी
वृंदावन की गलियों में प्रेम महकाता है।
अंजान भी अक्सर सच्चे प्रेम को
देख उसकी ओर खींचा चला जाता है
प्रेम को पाने में नहीं महसूस करने में
ही एक अद्भुत आंनद आता है।
#अंजान भी #अंजान प्रेम से
साक्षात्कार करना चाहता है।।