STORYMIRROR

Rajiv Jiya Kumar

Abstract Romance

4  

Rajiv Jiya Kumar

Abstract Romance

महबूब मेरे

महबूब मेरे

1 min
375

महबूब मेरे 

तेरे आंचल तले

सुकून वह मिले

तलब जिसकी हमें

जन्मो से रही

महबूब मेरे।।


खिले खिले से

कमल की तरह

लब जब भी तेरे

कुछ कहे

हमें सुना जाते

अनकहे सिलसिले

महबूब मेरे।।


झुकी पलक के तले

नयन का तेरे

मग्न करता 

यह जादुई कौशल 

लुभाता हमें

दिखते हैं गाते

गीत सुहाने सुहाने

महबूब मेरे।।


मेहंदी रचे

हथेली यह तेरे

हर रंगों के फूल 

खिला देते

हसीन ख्वाबों में मेरे

सारे के सारे

महबूब मेरे।।


छन छन खनकते

यह पाजेब तेरे

सजते हैं ऐसे

मतवाले धुन पर

थिरका दे जां मेरा

थिरकते मयूर

देख जैसे बादल घनेरे

महबूब मेरे

महबूब मेरे।।

      



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract