मेरी कविता
मेरी कविता
नित नव भावों को पिरोकर,
शब्दों को संजो संजो कर,
नव सृजन मैं करती हूं,
काश!
जाग जाए हर अंतस,
कुछ प्रयास मैं करती हूं।
झकझोरने इस समाज को,
गीत नया मैं रचती हूँ।
एक नवनिर्माण की आशा में,
हर नई रचना करती हूँ।
काश!
पनप जाए प्रेम की बेल,
इन भावों के सहारे से,
जाग जाए करुणा भी अब,
ईश प्रेरणा के इशारे से।
लिखती हूँ हर शब्द मैं,
नवजागरण की इच्छा से,
जागे हर अंतस अब,
कुविचारों की विभीषिका से।।
