मेरी चाहत पूछो
मेरी चाहत पूछो
मेरी चाहत पूछो...
बारिश की बूंदों से
जो ऊंचाई पे जाकर, ज़मीन पे बरसती है
मेरी चाहत पूछो...
समन्दर की लहरों से
जो चोट खाकर भी, साहिल को पहुंचती है
मेरी चाहत पूछो...
पी-पी करते पपीहे से
जो एक बूंद की खातिर, सावन का इंतज़ार करती है
मेरी चाहत पूछो...
उस चकोर से
जो बिना पलक छपकाये, चाँद का इंतज़ार करता है
जो बिना पलक छपकाये, चाँद का इंतज़ार करता है