मेरे जज्बात
मेरे जज्बात
क्या कहूँ, कैसे कहूँ, क्या मेरी बात समझ पाओगे तुम
दिल तेरे नाम से धड़के, क्या मेरे जज्बात समझ पाओगे तुम
तेरा जादू मुझ पे चला, जहां देखूँ वहाँ तुम नजर आते
आँखों में बसे हो तुम, क्या मेरी खामोशी समझ पाओगे तुम
रोज कहने को तुमसे कितनी ही बाते होती है, मेरे पास
आज दिल-ए-हाल सुनाऊं, क्या कीमती समय दे पाओगे तुम
क्यों नहीं पढ़ पाते, तुम मेरी आँखों में अपने लिए प्यार
क्या दिल चीर के दिखाऊँ, शायद तब समझ पाओगे तुम
यूँ ही नहीं कोई दिल में बसता हैं किसी के मेरे यारों
मेरा एक तरफा प्यार सही, क्या मेरे दिल से निकल पाओगे तुम
प्यार में जरूरी तो नहीं की प्यार के बदले प्यार ही मिले
बिन प्यार के मेरी तरह क्या सच्चा प्यार कर पाओगे तुम
यूँ जिंदगी न निकल जाए तेरे ही इंतजार में मेरे हमदम
सुनो क्या आखिर मुझे ऐसे ही हर पल तड़पाओगे तुम
हाँ मैं एक स्त्री हूँ ना, अब कैसे कहूँ तुमसे अपने दिल की बात
एक कागज लिखें हैं अपने जज्बात, क्या पढ़कर भी न समझ पाओगे तुम।