मधुर मिलन
मधुर मिलन
उन्मुक्त मस्त गगन से काली घटा यूँ मिलने चली,
बादल का भी दिल धड़कने लगा
खोल बाँह अपने महबूब के लिए तरसने लगा।।
बिजली सी लहर तन -मन में उठी,
बरखा की फुहारें अँखियों से छलक पड़ी,
भिगने लगा घटा का रोम -रोम भी
अधरों से पैमाना भी छलकने लगा
मदहोशी का आलम इस कदर छाया
प्यार भरा मौसम खिल कर सामने आया।।
टूट गयी खामोशी छूट गया सब कुछ
जब घटा अम्बर का मधुर मिलन हमने पाया।।