मदहोशी
मदहोशी
तू दर्द उठा दिल में बर्दाश़्त की पी लूँगा
मैख़ाने अगर बंद हैं हालात की पी लूँगा।
बंद है अगर खिचनी तासीर तो बाक़ी है
दीवार के साये में मोहताजी की पी लूँगा।
आवाज़ के साहिल से शिद़्दत को हटा दे
बच्चों की आँखों से हसरत को हटा दे।
मेहनत के पसीने से ख़ुशबू को हटा दे
शायर के तसव्वुर से मोहब्बत को हटा दे।
महबूब की आँखों से निसबत को हटा दे
दरिया पे उतरी हुई ज़िया को हटा दे।
चांद के पहलू से हाला को हटा दे
नग़मों से छनती हुई तरन्नुम को हटा दे।
शमा के आँसू से ग़ज़ल को हटा दे
तोह्फ़ों के पहलू से इज्ज़त को हटा दे।
साहिल पे मचलती हुई मौजों को हटा दे
दुनिया को वजूद ऐ शाई से हटा दे।
कब तक तू हटायेगा इन मैख़ानों की दौलत
मैं ज़िन्दगी से मिली निजात की पी लूँगा।
तू दर्द उठा दिल में बर्दाश्त की पी लूँगा
मैख़ाने अगर बंद हैं हालात की पी लूँगा।
हर्फ़ उतरे तो लिखता हूँ तेरी आँखें
तू लेता इम्तेहां कहता हूँ तेरी आँखें।
परवरिश करती हैं मोहब्बत की तेरीआँखें
आशिकी मज़हब तो ईमान है तेरी आँखें।
रहम की ख़्वाहिश में आका है तेरी आँखें
सैफ़ ऐ क़ातिल भी है और मरहम तेरी आँखें।
कितनी आँखों को मयस्सर नहीं तेरी आँखें
फिरऔन को मिले दुनिया मुझको तेरी आँखें।
दीन से ग़ाफ़िल हूँ और रोशन है तेरी आँखें।
साक़ी के अक़ीदे का तलबगार नहीं हूँ
प्यासा हूँ मगर काफ़िर ओ अय्यार नहीं हूँ।
ऐ रब तेरी आँखों से ईमान की पी लूँगा
तू दर्द उठा दिल में बर्दाश्त की पी लूँगा।
मैख़ाने अगर बंद हैं हालात की पी लूँगा।
मदहोश दुनिया में हर शख्स बहका है
गन्दुम के दानों से खेत बहका है।
बारिश की बून्दों से आसमान बहका है
नदियों की अदाओं पे सागर बहका है।
झरनों की रवानी पे चश्मा बहका है
आमाल पे अपने आलिम बहका है।
बुलबुल की पुकारों पे जुगनू बहका है
सावन की फ़ुहारों से किसान बहका है।
बेगुनाह की सज़ा पे इंसाफ़ बहका है
औलादों के फ़न पे बाप बहका है।
हुस्न पे दिलों का अरमान बहका है
हिम्मत गर है तो तूफ़ान बहका है।
जब बहकता है सरे आम ये आलम
तो क्यों ये ऐतराज़ कि देख बहका है।
अब बहका हूँ तो बहकने दे साक़ी
मैं ज़माने का इल्ज़ाम पी लूँगा।
तू दर्द उठा दिल में बर्दाश्त की पी लूँगा
मैख़ाने अगर बंद हैं हालात की पी लूँगा।