मैंने खूब चाहा
मैंने खूब चाहा
मुहब्बत में मर जाना
पर छोड़ के कभी ना जाना
मैंने ये फलसफा अपनाया
दूसरों को दिल से अपना बनाया।
दिल रहा तरसता
जब बारिश का पानी बरसता
नदी नाले में पानी बह जाता
मुहब्बत की याद ताज़ी कर जाता।
मन से मैंने खूब चाहा
मिला फल तो खूब सराहा
जो था मेरे भाग्य में
हो गया ग्राह्य दिल से।
मेरी महोब्बत अब रंग लायी है
बसंत की एक लहर आई है
फूल खिले है रंगबेरंगी
जीवन है एक सतरंगी।
मुझे ना कहना अब रुक जाओ
प्रेम की तड़प को ना रुकवाओ
अब तो हो गया है इश्क़ दिल से
स्वर्ग बन जाएगी जिंदगानी एक बार मिलने से
मिल लो एक बार
नहीं भूल पाओगे संसार
इस में है खूब सार
रहो सदा खुश और मिलनसार।