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Hasmukh Amathalal

Romance

3  

Hasmukh Amathalal

Romance

मैंने खूब चाहा

मैंने खूब चाहा

1 min
35


मुहब्बत में मर जाना

पर छोड़ के कभी ना जाना

मैंने ये फलसफा अपनाया

दूसरों को दिल से अपना बनाया।


दिल रहा तरसता

जब बारिश का पानी बरसता

नदी नाले में पानी बह जाता

मुहब्बत की याद ताज़ी कर जाता।


मन से मैंने खूब चाहा

मिला फल तो खूब सराहा

जो था मेरे भाग्य में

हो गया ग्राह्य दिल से।


मेरी महोब्बत अब रंग लायी है

बसंत की एक लहर आई है

फूल खिले है रंगबेरंगी

जीवन है एक सतरंगी।


मुझे ना कहना अब रुक जाओ

प्रेम की तड़प को ना रुकवाओ

अब तो हो गया है इश्क़ दिल से 

स्वर्ग बन जाएगी जिंदगानी एक बार मिलने से


मिल लो एक बार

नहीं भूल पाओगे संसार

इस में है खूब सार

रहो सदा खुश और मिलनसार।



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