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Anubhav Nagaich

Romance

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Anubhav Nagaich

Romance

चाँद, चश्मा और ज़िन्दगी

चाँद, चश्मा और ज़िन्दगी

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चाँद और मेरा चश्मा है

कैसा ये करिश्मा,

बिना चश्मा चाँद धुंधला, 

चश्मे पहनकर बना दमकीला।


लाल चश्मे का है लाल चाँद, 

नीले चश्मे का है नीला, 

हर रंग के है चश्मे और

चाँद बना रंगीला।


चाँद हो या ज़िन्दगी दोनों ही पहेली,

जिस रंग का चश्मा उस रंग की है ज़िन्दगी,

बिन चश्मे के दिखती धुंधली ज़िन्दगी।

किस्मत वाले हैं जिनकी आंख है साफ,

मैं नहीं कर पता इनसे कोई इंसाफ।


काश होता ऐसा चश्मा जिसमें

चाँद दिखता चाँद जैसा,

मेरे संस्कारीे चश्मे से नहीं

जानता चाँद है कैसा ?


आँखें हो गयी थी कमजोर,

नहीं देख सकती चाँद को,

चश्मा मिलता नहीं ऐसा,

दिखा दे असली चाँद को, 


आँखे है धुंधली,

आँखों में है चश्मा,

चश्मे में है धब्बे,

लो बन गया चमकीला।

रोता रहता था नसीब को

काश देख सकता चाँद को।


दुआ हुई कबूल आया एक फरिश्ता, 

आँख साफ करने की कोशिश भी की,

लगा जैसे उसने मुझको नया जीवन दे दिया,

दिखाया मुझको चाँद सोचा था होगा बहुत सुंदर, 

देखते ही ऐसा घबराया भागा जैसे छछुंदर।


चाँद है भयानक या भयानक हैं संस्कार,

मेरे तो होश उड़ गए देखकर इसका आकार।

आँखे तो मिल गयी, पर अब लगता है

शायद धुंधला ही ठीक था,

तड़पता भी हूँ, लगाता भी हूँ वही धब्बेदार चश्मा,

भाग रहा हूँ चाँद से फिर भी रहता है वो सामने।


क्या करूँ इन आँखों का समझ नहीं आता,

अँधा भी नहीं हुआ जाता, देखा भी नहीं जाता।

वो फरिश्ता था या दरिंदा पड़ गया हूँ उलझन में,

भागता हूँ उससे दूर लेकिन

भागके भी उसी के पास जाता हूँ।


हटाना चाहता हूँ ये संस्कारी चश्मा

मगर अब ये ही कीमती लगता है।

चाँद हो या ज़िन्दगी है वो वैसी थी जैसी है,

इन चश्मो की आदत से लगती अब भयंकर है

इसे सुंदरता कहे या भद्दा, है वो वैसा ही जैसा है हमेशा।


अब एक दुआ और करता हूँ कि

इन आँखों के साथ,

इन आँखों से देखने की हिम्मत भी दो।


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