अनदेखी पुकार
अनदेखी पुकार
कहीं से पुकार,
आयी है पुकार,
पुकारती हुई पुकार खो गयी कहीं।
पुकारती रही पुकार, सुनता रहा वो,
सुनाई न दे मन को तो बाहर किया शोर।
पुकार सुनाई देगी जब, वो दिन भी आएगा,
गंगा तो सूख गई अब नंगा कहाँ नहायेगा।
न बेहोशी तोड़ा नाता,
न पुकार से होश में आता,
धुन धुन गाने दिन बजाता,
रात सारेगामा गाता।
जैसा चल रहा है चलने दो,
दुनिया ऐसे ही चलती है,
ये भी तो सोचा ही नहीं कि वो
दुनिया भी तो खुद ही है।
नहीं जीते सामने तो,
जीतेंगे अब दिमाग में,
और फिर कहेंगे हम हैं हीरो,
अपने आप के।
मुर्दों के गांव में आया एक दरिंदा,
मुर्दे बोले कौन है ये बन्दा,
करेगा मन को गंदा ?
और बांध गले मे फन्दा,
उल्टा टांगा उसको नंगा,
अब आज के मुर्दे जाने वो था
आसमानी बन्दा।
अब उसके नाम पे होगा दंगा।
चमचे मुर्दे भगवान के,
मुर्दे ही सिद्धान्त हैं,
सुनने वाले मुर्दे और
मुर्दों ही बलवान हैं।
फिर आया एक दरिंदा,
मुर्दों को लगा घातक,
बन्द करे अपने फाटक,
फट फट बन्द करे फाटक,
जाकर जला देंगे उसको,
फिर सोचेंगे सुने हम किसको?
चलता रहा ये सिलसिला और
दिया गया नाम इसे ज़िन्दगी का।
खेल है, खेल है, ये भी एक खेल है,
बन चालाक समझना मासूम,
ये भी एक खेल है,
मासूम समझ दिखाना
मासूम, ये भी एक खेल है।
खेल-खेल कितना खेलोगे,
भाग-भाग कभी तो थकोगे,
भाग-भाग कब-तक पकड़ोगे,
भाग-भाग कभी तो रुकोगे।
बन्दकर ये खेल, बन जाओ मासूम,
जो लुटाता है लूटने दो, निकलने दो आंसू,
जो समझ सकता है समझेगा, नहीं तो वापस जाएगा,
जो असली है ठहरेगा, नहीं तो बह जाएगा।