नए जमाने की गणेश चतुर्थी
नए जमाने की गणेश चतुर्थी
गली से गुज़रा तो देखी गणेश जी की झाँकी,
समझ नहीं आया, ये झाँकी है श्रद्धालुओं की
या गणेश जी के ठेकेदारों की।
गणेश जी की झाँकी को देखकर
फिर चला चंचल मन,
फिर उठे उसके मासूम से तर्क।
अगर गणेश जी झाँकी में हैं,
तो मंदिरों में कौन है ?
अगर वो मंदिरों में भी हैं,
तो क्या घरों की मूर्तियों में भी वो हैं ?
अगर उसमें भी हैं, तो भक्तों को सड़क पर
जाम लगाने की क्या जरूरत है ?
समझ के परे है कि अगर श्रद्धा मूर्ती में हैं,
तो दिल में कौन है ?
क्या दिल सिर्फ उस झाँकी में आने वाली
सुन्दर लड़कियों के लिए ही है ?
अगर गणेश जी दिल में भी हैं तो
उन्हें इतनी जोर जोर से फ़िल्मी गाने बजाकर
पूरे मौहल्ले में शोर मचाने की क्या जरूरत है ?
मन का शोर अभी बंद नहीं हुआ था,
क्या झाँकियों की जरूरत इसलिए पड़ती है कि
मंदिर हाउसफुल जा रहे है या इसलिए
कि गणेश जी लोगों के घरों से चले गए हैं ?
अब तो गणेश जी भी सोचते होंगे कि कभी तो मुझे भी
आज़ादी मानाने दो, कभी तो मुझे भी
इन मूर्तियों से बाहर निकलने दो।
गणेश जी के लिए मुझे सहानुभूति है,
उनके भक्त आज उन्हीं की
आज़ादी का रोड़ा बन गए हैं।
इतनी सारी मूर्तियां बना दी हैं कि
गणेश जी का तो अब इनसे मुक्ति पाना
मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।
अभी उनसे बात तो नहीं कर पाया हूँ,
मगर कभी हुई तो पूछना चाहता हूँ कि माज़रा क्या है ?
गुलाम आपने इन्हें बनाया है या इन्होंने आपको ?
आपका भक्त आपकी भक्ति से आज़ाद नहीं,
आप अपने ही भक्त की मूर्ती से आज़ाद नहीं।
क्या ऐसा हो सकता है कि आप और
आपके भक्त दोनोँ आपकी मूर्तियों से आज़ाद हो जाएं ?
मगर मेरी भी मज़बूरी है,
ये सवाल किसी से भी न पूछ पाने की,
आपके वजूद का मुझे कुछ पता नहीं,
आपके भक्तों को भक्ति का ही कुछ पता नहीं।
मन में रह रहा है, बेचारे गणेश जी भी
मूर्तियों में फंसे हुए हैं, उनके श्रद्धालु गणेश जी
के लिए पैसा जोड़ने में मग्न हैं।
अगले साल इन पैसों से और बड़ी झाँकी बनेगी,
गणेश जी को और ऐशो आराम से बैठाया जायेगा,
पता नहीं गणेश जी इन पैसों का क्या करेंगे ?
वहीँ सवाल फिर उठा है मन में,
ये झाँकी है श्रद्धालुओं की या गणेश जी के ठेकेदारों की ?