सच्चे आनंद की आग
सच्चे आनंद की आग
हे आग! अब जला दो मुझे।
मैं अंधेरे का निवासी कहाँ
से आया पता नहीं।
नहीं पता था अंधेरा क्या है,
क्योंकि प्रकाश जैसा कुछ
जाना नहीं।
नहीं चाहता था बदलना मगर,
था बदला जा चुका, पता चला नहीं।
अंधेरे में डिस्को लाइट्स देतीं थी मज़ा,
क्योंकि आनंद कभी जाना नहीं।
मरता हुआ मरने की तरफ जा रहा था,
क्योंकि ज़िन्दगी को कभी जाना नहीं।
भागता रहता था खुद की और लोगों
की बातों से,
क्योंकि किसे कहते हैं सुनना, कभी
जाना नहीं।
एक दिन अंधेरे में, गले में डर की जंजीरें
डाले और लालच की कीलों से बनी
चप्पल पहनें चल रहा था।
दूर कहीं एक रौशनी दिखी,
डिस्को लाइट्स से बहुत अलग थी,
शायद इसलिए बड़ी आकर्षक लगी।
रौशनी पास आई तो दिखा कि वो
आग थी,
वो आग मुझसे अलग थी, पर लगा
जैसे मेरी ही थी।
खेलना चाहता था उसके साथ,
सोचा मज़ा आएगा।
मगर वो आग इन अंधी आँखों को
रौशनी देने लगेगी इसका पता नहीं था।
दिखाई मुझे झलक प्रेम की,
झुमाया मुझे आनंद में।
दिखाया मुझे वो प्रकाश जिसके
बारे में सुना तो बहुत था,
मगर कभी देखा नहीं था।
बताया मुझे कि मैं अंधेरे का निवासी
नहीं हूँ, बस प्रकाश के बिना जी रहा हूँ,
दिखाई मुझे वो रंगीन दुनियाँ,
जो बिना प्रकाश के बहुत
काली दिखती थी।
आग के साथ रह कर तो मैं भूल ही
गया कि मैं तो एक अंधेरे का निवासी हूँ,
नहीं पता था क्या कर रहा हूँ,
बस उस आग के साथ आग में तैर
रहा था।
लगा जैसे ये आग खुद मुझे
ख़ुदा से मिलाने आयी है,
फिर महसूस हुआ कि ख़ुदा से तो
मिलवाया नहीं, ये मुझे ही जलाने
आयी है।
कहती है कि यही एक रास्ता है
ख़ुदा से मिलने का।
लगा जैसे ये मुझसे मेरी दुनियाँ
छीनने आयी है,
मेरा घर, मेरा अंधेरा, मेरी
डिस्को लाइट्स।
अब लगने लगी वो दुश्मन,
जो अब-तक साथ थी दोस्त बनकर,
लगने लगा उससे डर और देखते
ही देखते ऐसे भागा जैसे छछून्दर।
भागा इतनी जोर से कि अब वो
दिखना बंद हो गयी है।
महसूस कर सकता हूँ उसको,
क्योंकि वो आग मेरे अंदर ही कहीं है।
ढूंढने पर न तो कभी दिखी थी,
न ही कभी दिखेगी।
ये तो बस उस आग का ही चुनाव
था कि वो मुझसे मिली थी।
अब तो बस पुकारता रहता हूँ,
शायद वो फिर मुझे चुन ले।
अब तो बस इतनी सी गुज़ारिश है कि
आओ और जला दो मुझे।
हे आग! आओ अब जला दो मुझे।
मुझ मे खुद को जलाने की इतनी
हिम्मत नहीं ,
हे आग! आओ अब जला दो मुझे।
ले चलो ख़ुदा के घर,
हे आग! अब चलो भी, जला दो मुझे।
एक बार फिर चुन लो मुझे।