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Gaurav S Kaintura

Romance

4  

Gaurav S Kaintura

Romance

खयाल तो आया होगा

खयाल तो आया होगा

2 mins
308


​​खयाल तो आया होगा

उसे भी मेरा कभी चार

दीवारों में दिल की

बंद दरवाजों में मन के

अतीत के​​ उजड़े मकानों में

चंद पुराने किस्सों में ही सही

खयाल तो आया होगा।


पूछा होगा उसने भी

ये खुद से कि

कौन था वो लड़का

क्या था वो मेरा

कैसा था वो रिश्ता

खयाल तो आया होगा।


माना कि अब एक अरसा

बीत गया है उन बातों को

जिनमें हम दोनों एक साथ

सरयु नदी के किनारे बैठकर

आने वाली नाव का

इंतज़ार किया करते थे।


मुठ्ठी में चावल या चने के भुने हुए

दाने लिए वो आ जाती थी

और बैठ जाती थी एकटक

कभी कभी गुड़ की एक डली

भी साथ ले आती थी


और फिर हल्की मुट्ठी खोल के

मुझे भी खिलाती थी

और खुद भी खाती थी।

'ओ पपीहा ! ओ सुनहरी !'

कहके आस पास की

गिलहरियों को आवाज़ देती और

फिर कुछ दाने उनकी ओर

फैंक कर कहती।


'जरा देखो तो इन्हें कैसे

दौड़ी चली आयेंगी अभी।'

अब तो जमाना

गुज़र गया है उन बातों को।


मैं कुछ चौदह बरस का था उस वक्त

उसकी उम्र भी कुछ बारह

बरस की तो होगी ही।

फिर वो गांव छोड़कर शहर चली गई

अपने घरवालों के साथ

और मैं रह गया यहीं

सरयु के किनारे।


मगर इतना तो दावे के साथ

कह सकता हूं कि

गांव की सीमा को छोड़कर

जाते समय एक बार ही सही

खयाल तो आया होगा।


बारह साल बाद जब वो गांव

वापस लौटी तो

सब कुछ बदल चुका था।

और कुछ ना सही

वो पूरी अंग्रेजी मेम हो गई थी।


बड़े बड़े सैंडल,

सूर्य किरणों से बचने के

लिए काले चश्मे

हाव भाव बोली भासा सब कुछ

और हो भी क्यों ना


कलेक्टर साहिबा जो

बन गई थी अब

बड़े बड़े साहब लोग तो उसके

आगे पीछे घूमते ही रहते थे

पर जाने क्यों मुझे अब वो पुरानी

बिंदू जैसी नहीं लगती थी।


वो बिंदू जो कभी मेरे बगल में बैठकर

अपनी आवाज में गा पड़ती थी

'सावन का महीना पवन करे शोर

जिया रा रे झूमे ऐसे जैसे बन मा नाचे मोर।'


वो बिंदू तो शायद मैं भी वहीं छोड़ आया था

बारह बरस पहले सरयु के किनारे।


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