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Reena Virani

Romance

4  

Reena Virani

Romance

एक दिन तेरे बिन

एक दिन तेरे बिन

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स्कूल से घर पहुँचे और तुम्हारा चेहरा न दिखे

तो ढलते सूरज की रोशनी भी ख़ाक सी लगती है

तू बाज़ार गई है आ जाएगी ये कहने वाले चेहरे बहुत थे

बस एक चेहरे की तलाश थी जो मेरी मंज़िल सी खास थी।


वो हरा भरा किलकारियों से

गूंजता मकां श्मशान सा लग रहा था,

और तेरे इंतजार में एक पल मानो

सालों लग रहे हों उसे गुजरने में।


भूख से बेहाल मेरा पेट उस लज़ीज़

खाने की महक से भी उब रहा था।

वो कब आएगी ये पूछने

जितनी ज़ुबान नहीं खुल पाती थी मेरी 


पर मेरे चहरे की लकीरें

बिखर सी गई थी तेरे इंतजार में

8 से 9 और फिर 10, घड़ी की धीमी

रफ्तार मेरी आंखों को नहीं थका पाई


एक कोने में दरवाज़े की ओर नजर टिकाए बैठी

अधूरी सी मेरी निगाहें और मन में

बहुत सारी शिकायतें थी

वैसे तू गई थी नानु का हाल पूछने पर पहली बार

मुझे यूं बिना बताए घर से निकली थी 


तेरे इंतजार में रात भर नींद ना आना

और सुबह तू जरूर आएगी

इस सोच में जल्दी उठ जाना 

बिना कुछ खाए पिए दरवाज़े पे खड़े रहना 


बहुत मुश्किल था पर उससे भी

मुश्किल तुम्हे देख के खुद को संभालना

तुझे आते आते 10 बज चुके थे

एक हाथ में काले रंग का बैग और

दूसरे हाथ की उंगली पकड़े हुए छोटू  


उस पिच ब्रासो में गुलाबी फूल वाली सारी

पहने जब तुम सामने से आ रही थी

मैं समझ ही नहीं पाई की पहले

शिकायत करूं या गुस्सा करूं


रोऊ या फिर रूठ जाऊँ,

दिल में इतनी उलझन पहले कभी न थी 

मुझे याद है में तुम्हारे सामने दौड़ी चली आयी

और रास्ते में ही पैर पकड़कर रोने लगी थीं।


लगभग 10 मिनट तक तुमको

हिलने नहीं दिया था उस जगह से। 

तू उठाके मुझे गले लगाना चाहती थी

पर तुम्हारी बात सुनने जितना होश कहा था मुझ में


टूटे शीशे के टुकड़े की तरह बिखर गई थी मैं।

वैसे तुम अकेली नहीं गई थी उस दिन

जरूर तू मेरी सांसें अपनी

सारी के पल्लू से बांध कर ले गई होंगी।


वरना इतनी बेबस धड़कनें मेरी भी न होती

शिकायत तो आज भी में तुमसे

इसी बात पर करती हूं पता नहीं क्यूं

इसे याद करते हुए आज भी में

उतना ही दर्द महसूस करती हूं


पर तू हँसते हुए कहती है अब क्या है ?

इस बात को तो इतने साल बीत गए

पर मेरे लिए तो ये कल ही हुए

किसी हादसे जितना ताज़ा है।


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