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Reena Virani

Drama Tragedy

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Reena Virani

Drama Tragedy

रचना

रचना

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एक लहर उठी है मन मैं,

क्या है हम नारी अबला ?

कोइ कहता पहन लो चूड़ियाँ,

तुम मर्द हो या हो नारी अबला।


वे हाथ उठाकर नारी पर,

ख़ुद को मर्द कहलाते हैं।

मैं सोचूँ क्या हक हैं उन्हें ?

वे ख़ुद को इन्सान कहलाए।


बल प्रयोग से मर्द कहलाए,

ख़ुद को बुद्धिमान वे पाए,

नारी को पैर की जूती बनाए,

अबला कहकर हँसी उड़ाए।


गर होती कमज़ोर चूड़ियाँ तो,

न सहती इतना अत्याचार,

वो नारी हैं अबला नही,

मन की शक्ति है अपार।


बस मौन है उसका गहना,

और सहनशक्ति हैं श्रृंगार,

न तोड़ तू धीरज के द्वार,

सिमटने को रहो तैयार।


न नाप तू बल से उसे,

देख मन है कितना विशाल,

सो खुशियाँ क़ुर्बान करती,

जीने को तेरी एक मुस्कान।


ये नारी है अबला नहीं,

है उन्हें सबका ख़्याल,

न कमज़ोर समझ,

इन्हें दो सम्मान।।


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