मां
मां
वो ठिठुरती सर्दियों में
गर्म कम्बल सी है
वो झेलती लाख शैतानी हमारी,
फिर भी शीत लहर सी है
वो देह जलाती गर्मियों में
पैरों तले चप्पल सी है
वो जलती है, उबलती है,
वो दबती है, कुचल जाती है,
फिर भी वो सदा मुस्कुराती है,
वो बारिश के मौसम में
रिमझिम बरसात सी है
लड़कपन और प्यार से
पल भर में भिगो देती है
वो कड़कती बिजलियों में
दो पैर खड़े मकां सी है
वो मेघधनुष सी सतरंगी है।
कभी हरियाली, कभी फुलगुलबी
कभी अनंत आकाश सी है
वो चाहे लाख थकी हो दुनिया से
मेरी जिद्द के लिए दुनिया से लड़ती
कभी गम छुपाते हुए मुस्कुराती
गर कभी गलती से भी हाथ उठाती
तो आज भी अपना जी जलाती
इस मुस्कुराते हुए चहेरे के पीछे
नजाने कितने दर्द , कितने फ़र्ज़
न जाने क्या कुछ झेल रही है वो
मेरी एक जिद्द के चलते
जाने वो कितनी रात सोयी न होगी
इस दिन और रात के बीच नज़ाने
कितनी खुशियों ने कब्र देखी होगी
ये मां है, एक औरत है
खुद चाहे लाख हारी हो
तेरे लिए जी जाती है।
