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Manju Rani

Tragedy

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Manju Rani

Tragedy

मैं

मैं

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'मैं' मैं नहीं थी इसलिए टूट गई,              

ज़मीन पर बिखरी पड़ी,

''मैैं'' को समेेटने की कोशिश कर रही,

पर किसी भी टुकड़े मेें ''मैैं" नहीं,

"ह" क्यूूूफिक्स-सा "म" सेेे ऐसा चिपका,

कि "मैं" अलग हो पाता नहीं, 

इसलिए और बिखरती जा रही,

दुुुुनिया  "मैंं" ढूूँढने लगा रही,

पर मेरी खुशी "हम" में ही सिमट कर रह गई, 

गम और खुशी में फर्क करना ही भूल गई, 

बिखरी ज़मी  पर

"मैं" समेटने की कोशिश कर रही।


नयनों को समेेेेटने को कहती,

पर उन में असवन की धारा है रुकी,

मेेरे प्यार की कहानी बयान कर रही,

जहाँ दर्द का एक एक कतरा है जख्मी,

पर रूह अभी भी रूह में है फंसी

मोहब्बत की दास्तान है बहुत अनोखी,

बिखरी ज़मी पर

"मै" समेटने की कोशिश कर रही ।


फिर दिल को दस्तक दी,

"मैैं"को उठाने की,

पर वो तो "हम" के धागों मेेेें इतना उलझा,

कि धड़कना ही भूल गया,

धमनियों को बस रक्त है पहुँचाता रहता,

ये ही दास्तान है औरत के सम्मान की,

ज़मीन पर बिखरी पड़ी,

मैैं समेटने की कोशिश कर रही।


घरों में ऐसे ही सींची जाती

हम के दायरों में बांधी जाती,

जब दायरों मेें दरारें आती,

तब कोई मरहम नहीें भर पाती,

बस वो टूट कर बिखर जाती,

ज़मीन पर बिखरी पड़ी,

" मैैं" समेटने की कोशिश कर रही।


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