मैं तुम्हें हर कदम पर मिलूंगी
मैं तुम्हें हर कदम पर मिलूंगी
कल्पनाओं को प्रेरणा बनाकर
स्वप्नो में सन कर चलती रहूंगी
एक रहस्यमयी लकीर बनकर
खामोशी से देखती रहूंगी
जीवन के लम्हों से जुड़ती रहूंगी
सूरज की किरणों संग
रग रग में बसती रहूंगी
मैं तुम्हें हर कदम पर मिलूंगी
झरनों से गिरे जो पानी
मैं हर बूंदों संग घुल जाउंगी
उतर कर तुम्हारे कनवास पर
एक शीतल एहसास बन
तुम्हारे सीने से लग जाऊंगी
पानी की बूंदों की भांति
तुझमे बसर करती रहूंगी
मैं तुम्हें हर कदम पर मिलूंगी
यादों की लहरें जो
कायनात लम्हों समान होते हैं
उन लम्हों को चुन के सजाऊंगी
मैं हर जन्म साथ चलूंगी
कैसे, कहाँ, पता नहीं मगर
मैं तुम्हें हर कदम पर मिलूंगी।।