मैं प्रलय हूँ
मैं प्रलय हूँ
मैं प्रलय हूँ।
अरि-मस्तकों को काट काट,
शोणित-सुशोभित उन्नत ललाट,
सर्व व्याप्त विश्व रूप विराट।
रणचण्डी का उन्मुक्त अट्टहास,
रिपुहृदय में कर भय का निवास,
अग्नि उगले मेरी हर एक श्वास।
करता सुनिश्चित निज जय हूँ,
मैं प्रलय हूँ।
अविरल मेरी गति निरंतर,
पग थमे नहीं तूफानों से।
मैं थका नहीं मैं डिगा नहीं,
पथ में पड़ती चट्टानों से।
मैं भगीरथ मैं ध्रुव,
मैं अचल अटल निश्चय हूँ,
मैं प्रलय हूँ।
मिट गये मुझे मिटाने वाले,
मैं विद्यमान यहाँ अनन्त काल से।
मैं रुका नहीं मैं झुका नहीं,
ना तिलक मिटा कभी मेरे भाल से।
मैं विंध्य मैं नगपति,
मैं सुदृढ़ सबलता परिचय हूँ,
मैं प्रलय हूँ।
मैं उद्गम लोहित नदियों का,
मैं ही रक्त का महासागर।
धर्म मार्ग पर हर त्याग गौण है,
मैं करता यह सत्य उजागर।
मैं ऋषि दधीचि मैं शिवि नरेश,
मैं देता दान अभय हूँ,
मैं प्रलय हूँ।
राष्ट्र धर्म के पावन तप में,
सहर्ष भस्म हो वो आहुति मैं।
मातृभूमि के चिर वंदन में,
श्रद्धा से समर्पित स्तुति मैं।
संकट गहन तिमिर चीरता,
निजअग्नि में प्रज्जवलित सूर्योदय हूँ,
मैं प्रलय हूँ।
मैं विस्तृत अवनि से अम्बर तक,
अंतरिक्ष का मैं वक्ष चीरता।
आरम्भ तू मेरा अंत भी तेरा।
सब साक्ष्य बन देखें मेरी वीरता।
मैं महाविनाश में निहित सृजन,
मैं महाकाल मृत्युंजय हूँ,
मैं प्रलय हूँ।